Friday, August 31, 2018

年“最佳环境报道奖”作品征集通知

最佳环境报道奖”评选由中外对话和英国《卫报》 联合发起,旨在提倡客观、公正、深入的环境报道,提高环境报道水平,奖励优秀环境记者,促进中国环保事业。

今年将是“最佳环境报道”第五届活动,此前的四届评选共奖励了59个环境记者个人及报道团队。 其中,第四届活动与中国著名的公益环保奖“ ”生态奖共同举办。

2014年伊始,“最佳环境报道奖”第五届征集评选也拉开了帷幕。我们期待更多优秀作品参与评选!

作品征集要求:

在2013年1月1日至12月31日间,以文章、摄影作品形式正式发表于纸媒、网络媒体的环境报道作品。

提交方式:

参评作品可由媒体推荐、他人推荐和自荐。请于2014年3月10日前,将参评作品的电子件及网络链接发送到cd_pressawards2014#126.com(#替换为@), 电子件和邮件统一命名方式为:“CD”+作品名称+作者名字+所在媒体名称(缺失项以“0”代替;同一作者有多份作品,请在作者名字后编号),并请撰写简要的推荐说明,内容包括:选题的重要性、采访写作的专业表现、作品影响力。

征集时间:

2014年1月17日至4月10日

奖项:

评选“年度最佳记者奖”、“最佳调查报道奖”、“最佳影响力奖”、“最佳突发报道奖”、“最佳深度报道奖”、“最佳青年记者奖”、“最佳公民记者奖/自媒体奖”各一个,此外还将评选6-8个优秀奖。(根据作品情况,评委会也可能机动调整奖项类别)。最佳青年记者奖为今年第二次颁发,旨在鼓励从事新闻工作不足三年的优秀青年记者。

相关活动及宣传:

中外对话将翻译获奖作品,并以双语形式发表于网站和期刊;合作媒体将发文介绍评奖情况;同时,我们将通过微博和微信推介入围作品。
奥巴马总统说,气候变化“已经开始危害西部地区,那里的人们正与干旱作斗争,而沿海城市则在遭受洪灾困扰。”他会像《气候行动计划》(2013年6月宣布)中提出的那样,给使用化石燃料的发电厂设定污染上限。

然而,他并没有提及加拿大至墨西哥湾的“拱心石XL”输油管线这个正在等待他批准的项目。

他对天然气发展的推动也遭到一些观察家的批评,他们认为此举使太阳能、风能等可再生能源更加难以增加市场占有率。

奥巴马称天然气“可以成为桥梁燃料,既能为我们的经济提供能源,又能减少导致气候变化的碳污染。

世界资源研究所(WRI)对奥巴马的演讲做出回应说,现在的当务之急是美国环保署要制定高要求的电厂排放标准。

“与一些评论家的观点相反,我们认为这些标准能够推动创新,激励人们开发新技术, ”世界资源研究所的CEO安德鲁·斯蒂尔说。

“美国在应对气候变化方面的领导力还有助于推动全球2015年在巴黎达成一个强大有力、覆盖面广的气候协议。通过在国内设定高标准,美国能实现其到2020年比2005年减排17%的国际承诺。这些行动将使美国取信于国际社会,并为设定超越2020年的更宏大的气候目标打下基础。”


Thursday, August 30, 2018

为什么要学习一门新语言?

英语在商业世界也占主导地位。一些跨国公司,比如日本的本田公司( 正努力在2020年前让英语成为公司的官方语言。那么,已经在美国工作的英语使用者为什么还要费心去学习其他语言呢?
答案在于美国就业市场正在发生的变化。能说至少一门流利的外语确实能让你在雇主面前更有竞争力——甚至对以英语为母语的人来说也是如此。
去年,联合了美国500名市长的”新美国经济”网站( )发布了一份报告,报告显示,2010年至2015年间,美国招聘双语工作者的广告数量翻了一番。一些公司加大了招聘力度——例如,美国银行( )在2015年发布的招聘信息中,有三分之一是面向会说西班牙语、汉语普通话和阿拉伯语等语言的双语员工。报告指出,双语职位招聘数量增长最快的是“高声望职位”,如财务经理们可以想象,学习汉语普通话的美国人会有很多机会,”位于华盛顿的乔治城大学(  )语言学教授莱特富特( 说。“在某种程度上,美国人学习汉语的需求是相当强大的,因为在中国很少有人说英语。”
然而,尽管有潜在的回报,学习新语言的美国人仍然很少。皮尤研究中心(Pew Research Center)最近发布的一项新研究发现,在校学习语言方面,美国远远落后于大多数欧洲国家。研究发现,只有20%的美国学生在学习另一种语言。欧洲学生的中位数则是92%。
如果不仅仅是为了得到一份工作,学习一门外语还有其他实实在在的好处。此外还有认知上的好处——学习另一种语言可以提高注意力等技能。

阿伯特说,“所以当收银台的收银员对一个不明白甚至不知道如何付款,或者不知道如何打包杂货的人不耐烦的时候——我有过这种遭遇——我就会观察并模仿我前面的人的行为。我认为每个人都需要对人有耐心。”
但一些数据表明,美国人只是对这种情境不感兴趣,或者没有能力把自己置身于这种情境中。美国人出国旅游的次数不如其他英语国家的人多。例如,只有超过40%的美国人拥有护照,而澳大利亚人的这一比例为57%。毕竟,外国离美国都很远,美国人出国旅行的费用也比许多国家高,比如英国人,英国人不到一小时就能到达欧洲其他国家。
然而,真正的解决方案可能在于国内。解决单一语言主义的主要方法是在学校尽早开始教授外语。
莱特富特说,“让美国人在可以吸收知识的年龄时候就开始接触其他语言——不是在12岁的时候,当然更不是在30岁的时候。”
但是,如果人们不想学习另一种语言,那么他们就不会去学习。
莱特富特说, “动机是一个复杂的问题。70年代我在蒙特利尔( )住了几年,在那里,学法语很容易——你所要做的就是切换电视频道,看冰球比赛。”
但他指出,情况并非总是如此。直到1976年,一个新的分离主义政府上台,才将重点转向学习和使用法语。莱特富特说,“在蒙特利尔,学习法语的阻力曾经很大,这可以追溯到政治史。”
和许多以英语为中心的国家一样,美国可能以单语著称——而且英语的主导地位不太可能在短期内受到挑战——但数据和趋势表明,美国人的语言习惯可能会发生变化。
对于我们这些以英语为母语的人来说,我们很容易依赖我们已有的技能。但更大的回报可能来自于使用我们本不具备的那些技能。
在美国,还有另一个必须阻止单一语言主义( )趋势的迫切因素——就是在美国现正不断扩大的同情心缺失现象。同情心是指可以感受他人情感,能换位思考的能力。
专家指出,缺乏某些生活经验是造成群体之间严重缺乏理解的原因。阿伯特提到了去一个非英语国家旅行的经历,尤其是去一个不使用拉丁字母的国家。她说,除非你经历过,否则从如鱼离水突然变成哑巴这样的事你是无法感同身受的。
、编辑和工业工程师。

Tuesday, August 28, 2018

日内瓦气候会谈通过草案,减排前路仍然艰难

上周在日内瓦召开的新一轮气候会谈通过了一项长达90页的协议草案。从这份三倍于普通协议的草案可以看出,各国若想在巴黎气候峰会上达成一份气候协定,就必须付出巨大的努力。

会谈建立在联合国气候变化框架公约( )之下,旨在完成一个得到各国认可的协商案文,并由此最终达成一项全面的气候协定,从而遏制发达国家和发展中国家的温室气体排放增长势头。

去年12月在利马举行的气候会谈让人十分失望。因此,观察人士并未对本次日内瓦气候会谈能够在重要问题上有所突破寄予厚望。

上周的会谈主要是解决程序层面的问题(比如首先制定一份协议草案),而非着手解决减排责任分配、减排融资和协议的法律地位等分歧十分严重的问题。

“上周,我们至少达成了一项共识,同意谈判人员围绕这份草案展开工作。草案现在有90多页,下轮会谈时将会进行缩减,那时会谈进程就会变得更加困难。”联合国气候会谈分析师、第三代环保主义组织(E3G)成员丽兹·加拉格尔说道。

下轮会谈将在六月份举行。届时,各主要排放国最终必须围绕气候协议中将出现的重要问题展开讨论,并做出相应妥协,这样才能保证巴黎气候峰会的讨论“有本可依”。

这也意味着,各方将对上周草案中(主要出于自身利益考虑)增加的许多条款进行敲定、修改或删除。由此也可以判断出各国代表的谈判诚意。

上周, 秘书处执行秘书克里斯蒂安娜‧菲格雷斯略带玩笑地表示,日内瓦气候会谈最大的消息就是没消息。但她对日内瓦气候会谈的“公开透明”表示赞赏,并高度评价了未来气候峰会谈判“有本可依”的重要性。观察人士表示,2009年的气候谈判上,有少数几个国家因意欲促成某项协议而备受指责。而在这次的气候会谈上,各国彼此间的信任似乎有了很大进步。

一位不愿意透露身份的观察者表示:“这次会谈的气氛更加积极开放,但真正艰难的会谈还没开始。”预计在6月份的气候会谈召开前,中国、欧盟、美国、以及其他很多国家将会公布自己的减排计划,联合国希望这样的行动能够进一步加强各国在会谈中的相互信任、以及会谈的透明度。

各国减排计划中的大部分措施早就对外进行了公布,但这些措施很可能无法满足将全球气温上升幅度控制在2摄氏度以内的目标。

这也意味着,各国即使在巴黎气候峰会上达成了一项新的协议,仍需要做出更加长期的减排承诺,彻底放弃化石燃料,从而向能源生产者和使用者释放出强有力的信号。

Wednesday, August 15, 2018

深圳佳士工人维权发酵:左翼青年与政治诉求

深圳佳士工人维权事件自7月起发酵,二三十岁的左翼青年成为事件中抢眼的参与者。观察人士也注意到,与以往工人维权不同,此次工人的目的已经从经济诉求转变为政治诉求。
近日此事再起风波,工运人士、现场声援团核心成员沈梦雨自上周六(8月11日)起失联。
抗议发生在中国广东省深圳市佳士科技工厂。工厂工人指公司存在超时加班、严苛罚款、欠缴公积金等违法行为,希望通过组建工会来维护自己的权益。今年5月,数名佳士工人开始筹备组建工会,但随后有积极组建工会的工人代表遭到不明身份人士殴打,也有涉事工人被开除。
7月27日事件进一步发酵,一些佳士工人及其支持者前往工厂要求复工,但遭到警方逮捕。工人们和到现场支援的学生自发组成了现场声援团,呼吁释放被捕工人。现场声援团成员岳昕表示,有29人遭到深圳坪山当地警方逮捕,目前仍有14名工人未被释放。
声援团在深圳坪山燕子岭派出所门前举行集会抗议,还向深圳市坪山区检察院递交公开信。26岁的声援团核心成员、中山大学统计系硕士毕业生沈梦雨在街头演讲的视频在推特、微信等社交媒体上广泛流传。
不过,上周六声援团称,沈梦雨遭到自称她叔叔伯伯的人绑架,目前下落不明,另外也有一名叫小胡的声援团成员失联。
对于沈梦雨失联一事,广东省惠州市大亚湾经济技术开发区公安局周一(13日)在微博上回应说,11日晚,沈梦雨在惠州市大亚湾一家餐厅用餐后被父母接上车带离。警方称,已联系沈梦雨父母核实,此事为其家庭内部矛盾纠纷,不存在绑架。
现场声援团成员、北京大学本科毕业生岳昕接受BBC中文采访时否认了警方的说法。“如果真是被父母和平接走,为何去追车的同学会突然被堵住?”她在推特上质疑,“又为何在我们要求调阅监控录像时,主干道上四个摄像头突然全部坏掉?”
目前,岳昕与其他声援团成员仍在四处奔走抗议,要求警方释放被捕工人和沈梦雨。
现场声援团成员也在不断增加,包括工人以及来自北大、北京语言大学和北京科技大学等高校的学生。“现在我们至少有三四十个人,”岳昕说。
这次抗议引来了全国广泛的关注和声援。北京大学、中国人民大学等十余所高校的学生发出声援书。香港大学社会学系教授潘毅、香港中文大学新闻与传播学院教授邱林川等百余名全球学者联署,呼吁释放被捕人士,支持工人自主筹建工会。
国际特赦组织中国研究员潘嘉伟也表示,中国当局羁押工人及其声援者的做法应当受到谴责,工人要求组建工会以保护自己的权益是完全正当的行为,“当局不应试图打压抗议者,反而应解决剥削劳工权益的问题,并应尊重工人结社自由的权利。”
现场声援团的成员中,有很大一部分是左翼青年。他们大多年龄在二三十岁,岳昕和沈梦雨就是两名“90后”。岳昕说,不少参与者是马克思主义者,他们希望维护工人阶级的利益。
他们的行动得到了国内左派人士的支持。《南华早报》早前报道,上周一(6日)中午,声援团在深圳坪山燕子岭派出所附近举行了集会,其中40多名共产党员和退休干部到场参加,他们都来自左翼网站“乌有之乡”。
现场图片显示,这些共产党员和退休干部大多是白发苍苍的老人,举着毛泽东的画像和横幅,横幅上写着“湖北 江西老工人 老党员 老干部支持被抓捕的佳士工人及其声援者”。
有观点指,目前佳士事件已经由劳工运动转化为由毛左主导的街头政治活动。但香港大学社会学系教授潘毅对BBC中文表示,此次行动由工人自发,随后得到高校学生和国内的一些左派人士的支援,并不是由国内左派人士主导。
位于香港的非营利组织中国劳工通讯周一(13日)发布了《中国工人运动观察报告2015-2017》。报告指,工人集体行动的发展势头趋于强劲,正在从珠江三角洲、长江三角洲地区,迅速向内陆省份扩展,组织性也大大提高。
报告称,报告期内,该机构共收集到工人集体行动个案6694起,其中5177起的诉求是追讨欠薪,303起的诉求是增加工资,两类诉求个案占比超过80%。
学者和观察人士注意到,此次抗议与以往工人维权事件有所不同的地方在于,工人和抗议者的诉求从经济诉求转变为政治诉求。以前的工人一般是要求增加工资,或者工伤要求赔偿,这次他们是要建立合法组织,通过工会的方式在厂内拥有自己的平台来处理劳资矛盾、争取自己的权益,”潘毅说,“所以我认为,工人已经觉悟到必须有自己的合法组织,这一点肯定比以前的运动更有进步意义。”
非营利机构中国劳工观察创始人李强也认为,这次工人维权要求建立工会是要求维护自己的政治权利,在以往的维权事件中比较少见。
“他们出来组建工会,表达了工人要当家做主的政治诉求,”李强说。

Thursday, August 9, 2018

ब्लॉग: मोदी तो यही चाहेंगे कि मुक़ाबला राहुल से हो जाए

हर पहलवान यही चाहता है कि दंगल वही जीते, हर पहलवान यही चाहता है कि चुनौती देने वाले को आसानी से पटका जा सके लेकिन, वो दिखे तगड़ा ताकि उसे चित करते ही अपना खूँटा और मज़बूती से गड़ जाए.
इस मामले में मोदी की नज़रों में राहुल गांधी सबसे फिट कैंडिडेट हैं. भले ही वो सदन में विपक्ष के नेता की हैसियत भी हासिल न कर सके हों, भले ही पंजाब के अलावा किसी राज्य में आज उनकी कोई ठोस हैसियत न हो, उनको हराना नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी की साझी विरासत को हराने जैसा दिखेगा या दिखाया जाएगा, और ये मुश्किल भी नहीं होगा.
दरअसल, पिछले सवा चार वर्षों में जिस तरह विधानसभाओं के ही नहीं, स्थानीय निकायों के चुनाव पीएम मोदी के नाम पर लड़े गए हैं, यहाँ तक कि यूनिवर्सिटियों के छात्र संघ के चुनाव ऐसे लड़े गए हैं, मानो अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव हों जिसमें एक तरफ़ मोदी हैं, दूसरी तरफ़ कोई और.
चार साल के कार्यकाल में कभी एक खुला संवादादाता सम्मेलन न कराने वाले प्रधानमंत्री की इमेज चमकाने के लिए मंगलयान के कुल ख़र्च से कई गुना ज़्यादा पैसे विज्ञापन और प्रचार पर ख़र्च किए गए हैं, हर पेट्रोल पंप पर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की तुलना में काफ़ी मोटी रकम भर रहे लोगों को उज्ज्वला स्कीम की सफलता के दो मुस्कुराते चेहरे दिखाए जाते हैं, एक पीएम, दूसरी ग़रीब गृहिणी.
ये जानना दिलचस्प होगा कि उज्ज्वला स्कीम के तहत कनेक्शन लेने वाली कितनी महिलाओं ने दोबारा भरा हुआ सिलिंडर ख़रीदा?
जवाब नहीं मिलेगा, ठीक वैसे ही जैसे नोटबंदी के बाद जमा हुए नोट आज तक नहीं गिने जा सके. अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण ने सवाल पूछे हैं, देखें क्या और कैसा जवाब मिलता है, इन तीन में से दो तो वाजपेयी सरकार के कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. उन्हें वामपंथी, भ्रष्ट या कांग्रेसी बताकर ख़ारिज करना आसान नहीं होगा.

वैसे यहाँ मुद्दा वो है भी नहीं, बात मुख़्तसर ये है कि सफल-विफल योजनाओं की घोषणा और उसके बाद बहरहाल उनके सफल होने के ऐलान के साथ पीएम मोदी का देश भर में रेडियो, टीवी, प्रिंट और आउटडोर बिलबोर्ड पर जितना प्रचार किया गया है, उसके मुक़ाबले विपक्ष का कोई नेता कहाँ टिक सकता है?
हालाँकि, ये कहना ज़रूरी है कि दिल्ली के अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के केसीआर, आंध्र के चंद्रबाबू या बंगाल की ममता, जिनके पास भी पब्लिक का पैसा है वो प्रचार में लुटा रहे हैं, विशुद्ध रूप से मोदी की देखा-देखी. राहुल के पास न तो ऐसी कोई हैसियत है न शायद कोई पैसा है, उनकी पार्टी के खजाँची कह चुके हैं कि पार्टी ओवर ड्राफ्ट पर चल रही है.
इन हालात में कभी तथाकथित चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी के लिए, देश पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी राज करने वाले नेहरू-गांधी परिवार के वशंज को हराना एक बड़ी कामयाबी होगी, भले ही वे खुद मोदीनामी सूट पहन चुके हों जिसकी बाद में करोड़ों में नीलामी की गई.
हाल ही में मोदी सरकार के खिलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई उसी की पुरानी साझीदार तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी), लेकिन पीएम मोदी ने टीडीपी के बदले कांग्रेस, नेहरू-गांधी परिवार और राहुल पर निशाना साधा, ये बेवजह नहीं है.
मोदी बस आसानी से हराने लायक प्रतिद्वंद्वी चुन रहे थे लेकिन विपक्ष ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं. इस बात के आसार नहीं हैं कि विपक्ष मोदी के ख़िलाफ़ एक राष्ट्रीय चेहरा आगे करेगा, उसकी रणनीति मोदी को अलग-अलग राज्यों में अलग तरह से टक्कर देने के बाद अंक-गणित की समस्या बाद में सुलझाने की है.
माने या न मानें, विपक्ष और मोदी-शाह दोनों एक तरह से सोच रहे हैं- नतीजे आने के बाद तय करेंगे क्या करना है, कैसे करना है. जनबल, धनबल, कॉर्पोरेट बल का हिसाब 2019 की गर्मियों में पूरी गर्मी के साथ दिखेगा, नतीजा चाहे जो हो.
बीजेपी के लिए ये बड़ा सिरदर्द यूँ है कि केंद्र और अधिकतर राज्यों की सत्ता पर काबिज़ बीजेपी अगर 272 के मैजिक नंबर तक नहीं पहुँच पाती तो उसे क्षेत्रीय दलों के सहयोग की ज़रूरत पड़ेगी, कांग्रेस के साथ कोई साझेदारी असंभव है और क्षेत्रीय पार्टियाँ अपने स्थानीय हितों के नाम पर किसी के साथ जा सकती हैं, इसलिए ये समझदारी और मजबूरी दोनों है.
रणनीति शायद ये होगी कि बीजेपी अपना कैम्पेन कांग्रेस के ख़िलाफ़ चलाए और क्षेत्रीय-प्रांतीय दलों से 2019 आम चुनाव के नतीजे आने के बाद गठबंधन का रास्ता खुला रखे, अगले कुछ महीनों में आप देखेंगे कि निशाने पर केवल और केवल राहुल होंगे, और बीजेपी के लिए इसी में समझदारी है.